शब्द की चोट लगी मेरे मन को | भावनाओं की समझ, शांति और आत्म-संयम का मार्ग

शब्द की चोट लगी मेरे मन को | भावनाओं की समझ, शांति और आत्म-संयम का मार्ग

शब्द की चोट लगी मेरे मन को” यह पंक्ति उन क्षणों का वर्णन करती है जब किसी के बोले गए कठोर या गलत शब्द हमारे दिल को गहराई से प्रभावित कर जाते हैं। इंसान का मन बहुत नाजुक होता है; तलवार की चोट भर जाए, पर शब्दों की चोट अक्सर बहुत देर तक दर्द देती है। ऐसे समय में मन टूटता नहीं, बल्कि सहारा चाहता है—समझ, शांति और धैर्य का। यह पंक्ति हमें remind करती है कि भावनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं और हमें उन पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, यह हमें भीतर की शांति प्राप्त करने की ओर भी प्रेरित करती है।

rajeshswari

शब्द की चोट लगी मेरे मन को,
भेद गया ये तन सारा हो मोह्पे साईं रंग डाला……

कण कण में जड चेतन में मोहे रूप दिखे इक सुंदर,
जिस के बिन मैं जी नही पाओ साईं वसे मेरे अंदर,
पूजा अरचन सुमिरन कीर्तन निस दिन करता रहता,
सब वैद बुला के मुझे दिखाए रोग नही कोई मिलता,
औषदि मूल कही नही लागे कया करे वैद विचारा,
मोह्पे साईं रंग डाला…

आठ पेहर चोसठ गली मन साईं में है लगता,
कोई कहे अनुरागी कोई वैरागी है कहता,
भगती सागर में डूबा मैं चुन चुन लाऊ मोती,
जीवन में फेलाऊ उजियारा चले अलोकिक ज्योति,
सुर नर मुनि और पीर हो लिया कौन परे है पारा,
मोह्पे साईं रंग डाला……..

कैसो रंग रंगा रंग रेजा रंग नही ये मिट ता,
इसी रंग जीवन में वारु एसा सुख मोहे मिलता,
साईं साईं साईं जीब सदा है रट ती दुनिया मुझको पागल कहती,
मैंने पाई भगती,
केहत कबीर से रूह रंगियाँ सब रंग से रंग न्यारा,
मोह्पे साईं रंग डाला…..

इसे भी पढ़े   मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वतवासी

सरल विधि

  1. समय: सुबह या रात का शांत समय चुनें।
  2. स्थान: किसी शांत जगह पर बैठें जहाँ आप अकेले और आराम में हों।
  3. प्रारंभ: 3 गहरी साँसें लेकर मन को शांति दें।
  4. भाव स्मरण: धीरे से मन में कहें—
    “मैं आहत हूँ, लेकिन मैं ठीक हो जाऊँगा। मेरा मन मजबूत है।”
  5. भक्ति/ध्यान:
    हल्के स्वर में कोई मंत्र, जैसे “ॐ शांति शांति शांति:” जपें।
  6. समापन: मैं अपनी भावनाओं का सम्मान करता/करती हूँ, और मैं स्वयं को heal कर रहा/रही हूँ।”

यह विधि किसी भी धार्मिक खतरे वाली क्रिया नहीं, बल्कि एक सुरक्षित, मानसिक शांति देने वाला अभ्यास है।

इस अभ्यास से मिलने वाले फायदे

  • भावनात्मक दर्द कम होता है और मन शांत होता है।
  • नकारात्मक विचारों की तीव्रता घटती है।
  • आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान बढ़ता है।
  • दिमाग साफ होता है और स्थिति को समझने की क्षमता बढ़ती है।
  • मन धीरे-धीरे मजबूत और संतुलित होने लगता है।

निष्कर्ष

“शब्द की चोट लगी मेरे मन को” — यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि हम इंसान हैं, और हमारे मन में दर्द होना स्वाभाविक है। किसी के शब्द हमें चोट पहुँचा सकते हैं, लेकिन हम अपनी healing की ताकत खुद रखते हैं। थोड़ी शांति, थोड़ा समय और थोड़ी self-love—यही मन को फिर से मजबूत बनाते हैं। जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, पर हमें याद रखना चाहिए कि दर्द स्थायी नहीं होता, और हम उससे कहीं अधिक मजबूत हैं।

Shiv murti

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *