बिजली कर्मियों का 324वें दिन भी निजीकरण के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन
वाराणसी (जनवार्ता) : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले बनारस के बिजली कर्मियों ने बिजली के निजीकरण के खिलाफ 324वें दिन भी व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निजीकरण थोपने की कोशिशों का पुरजोर विरोध करते हुए इसे जनविरोधी करार दिया।
संघर्ष समिति ने 16 सितंबर को हुई ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ऑफ पावर की बैठक में लिए गए निर्णय की कड़ी निंदा की, जिसमें राज्यों को विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के लिए तीन विकल्प दिए गए हैं। इनमें 51% हिस्सेदारी बेचकर पीपीपी मॉडल अपनाना, 26% हिस्सेदारी बेचकर प्रबंधन निजी कंपनी को सौंपना, या वितरण कंपनियों को सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट करना शामिल है। समिति ने बताया कि इन विकल्पों को न मानने वाले राज्यों की केंद्र से मिलने वाली ग्रांट बंद करने की धमकी दी गई है।
वक्ताओं ने कहा कि बिजली संविधान की समवर्ती सूची में है, जिसमें केंद्र और राज्य के समान अधिकार हैं। ऐसे में सात राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु) की राय लेकर निजीकरण थोपना असंवैधानिक है। उन्होंने ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन की बैठक में शामिल होने पर भी सवाल उठाया, इसे सरकार और निजी घरानों के बीच बिचौलिया करार दिया।
संघर्ष समिति ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 को तत्काल वापस लेने की मांग की और चेतावनी दी कि 3 नवंबर को मुंबई में नेशनल कोऑर्डिनेशन कमिटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स की बैठक में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का निर्णय लिया जाएगा। समिति ने 4-5 नवंबर को मुंबई में होने वाली डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2025 के निजीकरण केंद्रित एजेंडे की भी आलोचना की।
सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, ई. विजय सिंह, राजेंद्र सिंह, अंकुर पाण्डेय, अलका कुमारी, पूजा कुमारी, योगेंद्र कुमार, उमेश कुमार, रंजीत कुमार, कृपाल सिंह, शैलेंद्र कुमार, विशाल कुमार, गुलजार अहमद आदि ने संबोधित किया। बिजली कर्मियों ने निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी।