वाराणसी के छात्र तमिलनाडु में सीख रहे पारंपरिक मूर्तिकला के गुर
वाराणसी (जनवार्ता) । काशी-तमिल संगमम 4.0 के दूसरे चरण के तहत वाराणसी से गया छात्रों का दल इन दिनों तमिलनाडु में पारंपरिक दक्षिण भारतीय मूर्तिकला की बारीकियां सीख रहा है। यह कार्यक्रम उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक परंपराओं के बीच सेतु बनाने का एक अनोखा प्रयास है, जिसमें युवा पीढ़ी जीवंत रूप से भाग ले रही है।


तमिलनाडु के विभिन्न सांस्कृतिक और शिल्प केंद्रों में पहुंचे इन छात्रों को स्थानीय शिल्पगुरु और कारीगर पत्थर तथा धातु आधारित मूर्तिकला की तकनीकें सिखा रहे हैं। प्रशिक्षण में आकृति निर्माण, अनुपात, संतुलन, औजारों का उपयोग और धैर्यपूर्ण शिल्प प्रक्रिया पर विशेष जोर दिया जा रहा है। छात्रों ने बताया कि तमिल मूर्तिकला केवल तकनीकी शिल्प नहीं, बल्कि भक्ति, सौंदर्य और आध्यात्मिकता का संगम है, जो सदियों पुरानी परंपरा को जीवंत रखती है।

वाराणसी के छात्रों का कहना है कि यह अनुभव उन्हें काशी की अपनी प्राचीन शिल्प परंपराओं से जोड़ता है। दोनों क्षेत्रों की कलाओं में समानताएं और विशिष्टताएं देखकर उन्हें भारत की सांस्कृतिक एकता का गहरा अहसास हो रहा है। एक छात्र ने कहा, “मिट्टी या पत्थर को आकार देना आसान नहीं, लेकिन यहां का अनुशासन और दर्शन हमें नई प्रेरणा दे रहा है।”
काशी-तमिल संगमम 4.0 का यह द्वितीय चरण युवाओं को पुस्तकीय ज्ञान से आगे ले जाकर जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम बन रहा है। कार्यक्रम में साझा गतिविधियां, पवित्र स्थलों के दर्शन और आपसी संवाद शामिल हैं, जो राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर रहे हैं। इस यात्रा ने प्रतिभागियों में आत्मचिंतन, प्रेरणा और परंपराओं से गहरा जुड़ाव पैदा किया है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित इस पहल से उत्तर-दक्षिण के बीच भाषा, कला और संस्कृति का पुल और मजबूत हो रहा है, जो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार कर रहा है।

