दिल्ली में बीजेपी की नहीं,एनडीए की सरकार बनेगी,गठबंधन की शर्तों के साथ कैसे चलेंगे पीएम
भोपाल। 9 जून को पांचवी बार केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी। अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में पहले 2-2 बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बन चुकी है। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल 2014 और 2019 में एनडीए की सरकार पर बीजेपी का पोस्टर आगे रहा। सरकारों में सहयोगी दलों के मंत्री भी रहे,मगर फैसलों में पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के एजेंडे की छाप ही नजर आई। सहयोगी दल बिना विवाद के मोदी सरकार के फैसलों का समर्थन देते रहे। इस बीच चुनावी मतभेद के बाद शिवसेना और वैचारिक विरोध के कारण अकाली दल ने अलग रास्ता अपना लिया। जेडी यू भी बीच-बीच में गठबंधन से अंदर बाहर होती रहा। अब 2024 के चुनाव परिणाम में एनडीए अपने 20 साल पुरानी स्थिति में लौटी है, क्योंकि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। 10 साल बाद गठबंधन के उसूलों के साथ सरकार बनेगी।
1998 में शुरू हुई चुनाव पूर्ण गठबंधन की राजनीति,बीजेपी ने जोड़ा एनडीए
वैसे तो गठबंधन की राजनीति 1989 में संयुक्त मोर्चे की सरकार के साथ शुरू हुई, मगर दो ध्रुवीय चुनाव पूर्व गठबंधन का दौर 1998 से शुरू हुआ। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की अल्पमत सरकार गिरने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने इसकी शुरुआत की। 1996 में 161 सीटें जीतने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सरकार बनाने का न्योता और दो सप्ताह में बहुमत साबित की मोहलत दी। अटल बिहारी विश्वास प्रस्ताव लेकर लोकसभा में पहुंचे। उन्हें समता पार्टी, शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल और एआईएडीएमके का समर्थन मिला, जो बहुमत से बहुत कम था। फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया और तीसरे मोर्चे की सरकार बनी। जनता दल के एच डी देवेगौड़ा और इंदर कुमार गुजराल ने बारी-बारी सरकार बनाई, जो कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण टिक नहीं सकी। 1998 के चुनाव में बीजेपी ने 12 क्षेत्रीय दलों एनटीआर तेलगूदेशम पार्टी (लक्ष्मी पार्वती), समता पार्टी, हरियाणा विकास पार्टी, लोक शक्ति, शिवसेना, बीजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, एआईडीएमके, पीएमके, जनता पार्टी, एडीएमके, तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। इसमें कांग्रेस और तीसरा मोर्चा के खिलाफ लड़ने वाले राजनीतिक दल शामिल थे। 1998 के चुनाव में एनडीए को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला। अप्रैल 1999 में जयललिता के समर्थन वापस लेने के बाद वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई और मध्यावधि चुनाव हुए।
तीन चुनावों में लगातार हार के बार एनडीए के मुकाबले में बना सप्रंग
1999 में एनडीए का कुनबा और बड़ा हो गया और इसमें करीब 20 दल शामिल हुए। तमिलनाडु में डीएमके और आंध्र प्रदेश में तेलगूदेशम समेत पूर्वोत्तर के कई दल प्री पोल एलायंस के तौर पर चुनाव में उतरे और लगातार दूसरी बार गैर कांग्रेस सरकार बनी। यह गठबंधन की राजनीति का पहला सफल प्रयोग था, जिसमें सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। तीन चुनावों में लगातार हार के बाद एनडीए से मुकाबले के लिए 2004 में कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से दोस्ती की और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का नाम दिया। फिर चुनाव में दो राजनीतिक दलों के बजाय दो गठबंधनों में मुकाबले का दौर शुरु हुआ। 2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ चुनाव में उतरे एनडीए की हार हुई और संप्रग की सरकार बनी। 2009 में संप्रग की लगातार जीत के बाद मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2014 में भी बीजेपी और कांग्रेस अपने गठबंधन के साथ चुनाव में उतरी। इस चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला और गठबंधन की राजनीति के पैंतरे फीके पड़ गए। नरेंद्र मोदी की दो सरकार में एनडीए के घटक मंत्री बनाए गए, मगर उनकी हैसियत शर्त रखने की नहीं रही। अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों में सहयोगी दल शर्तों के साथ समर्थन देते और लेते रहे। इंडिया गठबंधन बनने के बाद बीजेपी ने एक बार फिर एनडीए को एक्टिवेट किया।
एनडीए में 30 पार्टियां शामिल,15 के पास लोकसभा में सीटें
2024 के एनडीए में 30 राजनीतिक दल शामिल है, जिनमें से 15 के पास लोकसभा में सीटें हैं। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इस सरकार दो बड़े पिलर बनकर उभरे। टीडीपी को 16 और जेडी यू के पास 12 सांसद हैं। 7 सीटों के साथ शिवसेना (शिंदे) और 5 सीटों के साथ चिराग पासवान एनडीए के बड़े घटक बने। जनता दल सेक्युलर, आरएलडी और जनसेना पार्टी के पास दो-दो सांसद हैं। इसके अलावा सात दलों के एक-एक सांसदों के साथ पीएम मोदी तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। एनडीए के 15 राजनीतिक दलों को चुनाव में एक सीट भी नहीं मिला। इस चुनाव में बीजेपी के वोट प्रतिशत में मामूली गिरावट आई और वह 63 सीटें हार गई। पिछले चुनाव में 37.36 फीसदी वोट हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी को 2024 में 36.56 प्रतिशत वोट मिले हैं। कांग्रेस को 21.19 फीसदी वोट मिले, जबकि 2019 में उसे 19.49 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी उसके वोट प्रतिशत में 1.7 फीसदी ज्यादा वोट मिले और 47 सीटों का फायदा हुआ। बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ, जहां सीधे तौर पर 29 सीटें कम हो गईं। महाराष्ट्र और राजस्थान कुल मिलाकर 22 सीटों का नुकसान हुआ। गनीमत यह रही कि एनडीए ने 293 का आंकड़ा छू लिया। एनडीए के हिसाब से देखें तो चुनाव में गठबंधन को 44 फीसदी वोट मिले हैं। मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी का भी फॉर्मूला तैयार है और 9 जून को एनडीए के मंत्रियों के साथ नरेंद्र मोदी शपथ ग्रहण करेंगे।