‘न मंगलसूत्र पहनिए,न लगाइए सिंदूर…अलग है हमारी पहचान’,नया राज्य बनाने की उठी मांग
नई दिल्ली। राजस्थान,महाराष्ट्र,गुजरात और मध्य प्रदेश के 49 जिलों को मिलाकर एक नया भील प्रांत बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। यहां का आदिवासी समुदाय ये मांग कर रहा है। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम में गुरुवार को आयोजित एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए सांसद राजकुमार रोत ने कहा जल्दी ही इस मांग को लेकर हमारा डेलीगेशन राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेगा। गुजरात समेत पड़ोसी राज्यों के भील आदिवासी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में इस रैली में शामिल होने के लिए पहुंचे। मानगढ़ धाम स्थान आदिवासी समुदाय का पूजनीय स्थल है।
आदिवासी नेताओं ने इस रैली का आयोजन किया था। इसमें नवनिर्वाचित सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि भारतीय आदिवासी पार्टी लंबे समय से अलग भील राज्य बनाने की मांग पूरी ताकत से करती रही है और ये मांग लंबे समय से हो रही है। उन्होंने कहा,’भील प्रदेश की मांग नई नहीं है। बीएपी इस मांग को जोरदार तरीके से उठा रही है।” सांसद ने कहा, ”महारैली के बाद एक प्रतिनिधिमंडल प्रस्ताव के साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मुलाकात करेगा।” उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को लोकसभा में भी उठाएंगे।
1913 का बलिदान
बाद में रोत ने लिखा, ”1913 में मानगढ़ पर 1500 से अधिक आदिवासियों का बलिदान सिर्फ भक्ति आंदोलन के लिए नहीं था, भील प्रांत की मांग के लिए था।” दरअसल मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान यानी तीन राज्यों की सीमाओं पर मानगढ़ धाम स्थित है। ये आदिवासियों के अमर बलिदान का गवाह है। सन 1913 की बात है। उस दौर में भयानक अकाल पड़ा था। लिहाजा खेती पर लिए जा रहे कर को घटाने की मांग आदिवासी समुदाय ने अंग्रेजों से की। जनजाति समुदाय अपनी परंपराओं की मान्यता के साथ बेगारी के नाम पर चाहता था कि उसके लोगों को परेशान न किया जाए। आदिवासी नेता गोविंद गुरु के नेतृत्व में 17 नवंबर, 1913 को अपनी मांगों के समर्थन में मानगढ़ में एकत्र हुए थे। जब अंग्रेजों को पता चला तो उन्होंने उस पूरे एरिया को घेर लिया और लोगों से जाने को कहा। लेकिन आदिवासी समुदाय जब नहीं हटा तो कर्नल शटन ने अचानक गोलीबारी का आदेश दे दिया। अलग-अलग साक्ष्यों में शहीद होने वालों की संख्या 1500-2000 के बीच कही जाती है।
गोविंद गुरु को पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दी गई लेकिन बाद में सजा आजीवन कारावास में तब्दील कर दी गई। सजा काटने के बाद जब गोविंद गुरु रिहा हुए तो 1931 में अपने निधन तक जन सेवा में ही लगे रहे। उनका अंतिम संस्कार मानगढ़ धाम में ही किया गया और समाधि बनाई गई। हर साल माघ की पूर्णिमा पर लाखों वनवासी उनको श्रद्धासुमन अर्पित करने उनकी समाधि पर आते हैं।
‘हिंदू नहीं हैं आदिवासी’
आदिवासी परिवार संस्था की संस्थापक सदस्य मेनका डामोर ने रैली के मंच से कहा कि आदिवासी और हिंदू समुदाय की संस्कृति अलग-अलग है। आदिवासी, हिंदू नहीं हैं और उन्होंने आदिवासी महिलाओं से मंगलसूत्र न पहनने और सिंदूर न लगाने को कहा। उन्होंने कहा, “मैं न तो मंगलसूत्र पहनती हूं और न ही सिंदूर लगाती हूं। मैं कोई व्रत भी नहीं रखती हूं।”
डामोर ने स्कूलों में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का जिक्र करते हुए कहा कि स्कूलों को भगवान का घर बना दिया गया है, जबकि इसका इस्तेमाल सिर्फ बच्चों को शिक्षा देने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारे स्कूलों को देवी-देवताओं का घर बना दिया गया है। यह शिक्षा का मंदिर है, वहां कोई उत्सव नहीं होना चाहिए।”
हालांकि राजस्थान सरकार पहले ही इस तरह की मांग को खारिज कर चुकी है। सरकार का कहना है कि केवल जाति के आधार पर अलग राज्य बनाने की मांग नहीं की जा सकती। लिहाजा राज्य की तरफ से सरकार को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा जाएगा।