रेप का आरोप लगाया,3 लाख लेकर कोर्ट में पलटी

रेप का आरोप लगाया,3 लाख लेकर कोर्ट में पलटी
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भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकारी मुआवजे के लिए रेप केस दर्ज कराए जा रहे हैं। यह सुनकर किसी को भी हैरानी होगी,लेकिन यह पूरी तरह सच है। दरअसल, MP में राज्य सरकार SC-ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत पीड़ित महिला को 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है। इसी मुआवजे के लिए ऐसे झूठे रेप केस दर्ज कराए जा रहे हैं।

झूठे रेप केस की बात क्यों उठी
सागर की एक महिला ने एक व्यक्ति पर बेटी से रेप का मामला दर्ज कराया। आरोपी की गिरफ्तारी हो गई और उसे जेल भेज दिया गया। जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तो दलित महिला ने ट्रायल कोर्ट में कबूला,‘साधारण झगड़े में उसने आरोपी पर अपनी नाबालिग बेटी से रेप का झूठा केस दर्ज करा दिया था।’

जब मामला जबलपुर हाईकोर्ट में पहुंचा,तो 17 मई 2022 को हाईकोर्ट ने आरोपी को न सिर्फ जमानत दे दी,बल्कि कहा कि ट्रायल कोर्ट रेप विक्टिम को राज्य सरकार से मिला मुआवजा वापस करने के लिए कहे।

मुआवजे के गणित को समझिए
अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की महिला से रेप होने पर राज्य सरकार 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है। मामले में FIR दर्ज होने पर एक लाख और कोर्ट में चार्ज शीट पेश होने पर 2 लाख रुपए दिए जाते हैं। यानी 3 लाख रुपए तो सजा होने से पहले ही दे दिए जाते हैं।

अगर आरोपी को सजा होती है, तो पीड़ित को एक लाख रुपए और दिए जाते हैं। सजा न भी हो, तब भी पहले दिया गया मुआवजा वापस नहीं मांगा जाता। यह प्रावधान केवल SC-ST वर्ग के लिए ही है,अन्य को नहीं।

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मुआवजे के बाद बदल जाते हैं बयान
आंकड़े बताते हैं कि SC-ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज रेप के मामलों में हर 5 में से 4 आरोपी बरी हो रहे हैं। यानी सिर्फ 20% केसेज में ही सजा होती है,जबकि पीड़ित को मिलने वाला मुआवजा 100% मामलों में बंट जाता है। केस दर्ज होने और सजा मिलने के मामलों में इतने बड़े अंतर की जड़ में है सरकारी मुआवजा।

इसको विस्तार से समझें तो पता चलता है कि कई रेप पीड़ित तीन लाख रुपए का मुआवजा मिलते ही कोर्ट में अपने बयान से पलट जाती हैं। वे FIR और चार्जशीट दाखिल होने तक का मुआवजा ले लेती हैं और कोर्ट में कह देती हैं कि रेप हुआ ही नहीं, या फिर दबाव में रेप का केस दर्ज कराने की बात कह देती हैं।

छह साल में 490 करोड़ का मुआवजा
एट्रोसिटी एक्ट में 47 कैटेगरी में मुआवजे का प्रावधान है। MP में पिछले छह साल में सभी कैटेगरी को मिलाकर 43 हजार 560 मामलों में 490 करोड़ रुपए से ज्यादा का मुआवजा बांटा गया। इस दौरान सजा सिर्फ 5 हजार 710 मामलों में ही हुई। अकेले रेप केसेस की बात करें तो 5 हजार 225 मामलों में 96 करोड़ रुपए की मदद की गई, लेकिन सजा 21% केस में ही हुई। पिछले साल तो सजा का एवरेज 12% ही था।

लिव-इन केस में भी रेप की FIR
मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय में अनुसूचित जाति-जनजाति अपराध शाखा के ADG राजेश गुप्ता उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जबलपुर रीजन में एक महिला और पुरुष लिव-इन में रह रहे थे। उनके दो बच्चे भी हैं। महिला ने पुलिस से कहा कि पुरुष ने शादी से इनकार कर दिया है, इसलिए दुष्कर्म का केस दर्ज किया जाए। महिला की शिकायत पर पुलिस को FIR दर्ज करनी पड़ी। 2016 में जब कानून में बदलाव हुआ, तब लोगों में अवेयरनेस आई।

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मुआवजे के लिए केस की घटनाएं पूरे प्रदेश में नहीं होतीं
इस मामले में मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य प्रवीण अहिरवार का कहना है, ‘मुआवजा तो पीड़ित परिवार के लिए जरूरी है। मुझे नहीं लगता कि मुआवजे के लिए किसी को फंसाने की घटनाएं पूरे प्रदेश में होती हैं। 99% ऐसे केस आते हैं, जिसमें वाकई अनूसुचित जाति के लोगों को सताया जाता है, उन्हें अपमानित किया जाता है, उनका शोषण होता है। अगर ऐसा मामला आता भी है तो ऐसे लोगों को कानून सजा देता है। कानून के दुरुपयोग की हम भी निंदा करते हैं।’

सरकार की तरफ से दमदार पैरवी नहीं की जाती
आदिवासी नेता और कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा का कहना है कि कोर्ट में आदिवासी महिलाओ का पक्ष रखने के लिए दमदार पैरवी नहीं की जाती है। दूसरी बात एट्रोसिटी एक्ट लगने के बाद जांच प्रक्रिया इतनी लंबी कर दी गई है कि पीड़ित महिला को बहला-फुसलाकर या प्रलोभन देकर मना लिया जाता है। इसीलिए केस में सजा नहीं होती। दरअसल, सरकार की मंशा आदिवासियों को न्याय दिलाने की नहीं है।

आबादी के मान से SC-ST के खिलाफ कम अपराध
मध्य प्रदेश में 53 हजार गांव हैं। इनमें से 45 हजार गांवों में ST-SC वर्ग की कोई FIR नहीं है। एक्सपर्ट कहते हैं कि यदि आप ST-SC के अपराधों को देखते हैं, तो आपको ये भी देखना होगा कि प्रदेश में इनकी जनसंख्या भी अन्य प्रदेशों से ज्यादा है। प्रदेश में इनके खिलाफ हुए अपराध इनकी आबादी के अनुपात में काफी कम हैं।


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