श्रीलंका-पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश की इकोनॉमी खस्ता क्यों हुई?

श्रीलंका-पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश की इकोनॉमी खस्ता क्यों हुई?
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नई दिल्ली। बांग्लादेशी सरकार के विरोध में और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे को लेकर दसियों हज़ार लोग ढाका में सड़कों पर उतर रहे हैं। इस देश में बढ़ते राजनीतिक तनाव,जीवन जीने की बढ़ती लागत और देश की नाजुक अर्थव्यवस्था के बीच प्रदर्शनकारियों ने चुनाव कराने की मांग कर डाली है। ये एक ऐसे देश की हालत है जो कोविड महामारी के दौरान भी विकास के पथ पर बढ़ता रहा था और जिसने इस रफ्तार को बनाए रखा था।

अचानक ऐसा क्या हुआ कि इस देश को अपनी हिचकोले खाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए बीते महीने नवंबर में अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष (IMF) से मदद की गुहार लगानी पड़ी है। आईएमएफ ने इस देश की मदद के लिए हामी भर दी है और वो इस देश को 4.5 बिलियन डॉलर (लगभग 37,000 करोड़ रुपये) की आर्थिक मदद मुहैया कराने जा रहा है।

गौर करने वाली बात ये है कि यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण उलटफेर है जो पिछले दो दशकों में अर्थव्यस्था का बेहतर दौर देख चुका है। खास तौर से 2017 के बाद से मजबूत आर्थिक विकास के दम पर बांग्लादेश 2020 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत को भी पछाड़ चुका है। अब यहां आलम यह है कि बढ़ते आर्थिक संकट को भुनाने के लिए इस देश का प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अवामी लीग सरकार और उसके नेता प्रधानमंत्री शेख हसीना को घेर रहा है।

वो देश भर में कई विरोध रैलियों को अंजाम दे रहा। बीएनपी इसे एक दशक से अधिक वक्त से बांग्लादेशी राजनीति पर हावी शेख हसीना को उखाड़ फेंकने के मौके की तरह देख रहा है. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा क्या गलत हुआ कि ये पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह आर्थिक दिवालियेपन की कगार पर पहुंच गया है?

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कम निर्यात ने डाला विदेशी मुद्रा भंडार पर असर
दरअसल सही राह चल रही बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने में रूस-यूक्रेन युद्ध ने अहम भूमिका निभाई है. इस देश से होने वाला निर्यात इस जंग की भेंट चढ़ चुका है। पश्चिमी देशों की मांग में गिरावट आने से देश का निर्यात सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित है. इससे सीधे तौर बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ा है।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार गारमेंट निर्यात में गिरावट और प्रेषण प्रवाह यानी भेजे जाने वाली रकम की वजह से तेजी से घट रहा है। 2011 से 2021 तक बांग्लादेश का कुल विदेशी ऋण 238 फीसदी से बढ़कर 91.43 बिलियन डॉलर हो गया। गौरतलब है कि इस अवधि के दौरान श्रीलंका के ऋण में 119 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई और ये अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ।

बांग्लादेश में नवंबर में मुद्रास्फीति (महंगाई) की दर लगभग 9 फीसदी पर पहुंच गई, जिससे हजारों बेरोजगार गारमेंट वर्कर्स अब भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. 2022 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मदद मांगने वाला श्रीलंका और पाकिस्तान के बाद हाल ही में बांग्लादेश तीसरा दक्षिण एशियाई देश बन गया है।

बिजली कटौती और ईंधन की कीमतों ने बिगाड़ा गणित
जब कोविड-19 महामारी की मार पड़ी तब अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ बांग्लादेश दक्षिण एशिया में आर्थिक विकास में सबसे आगे था। अब देश की गरीब से अमीर बनने की कहानी को इसकी राजनीतिक और आर्थिक अराजकता कमजोर कर रही है। हाल ही में बिजली कटौती और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से वहां सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का जोर है।

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ये बांग्लादेश के गहरे आर्थिक संकट में फंसने का सीधा संकेत है. यहां पर बांग्लादेश,ब्रिटेन की तरह यह दावा कर सकता है कि उसका मौजूदा आर्थिक संकट बाहरी कारकों की वजह से उपजा है. लेकिन जब वैश्विक मांग में गिरावट और कोविड-19 महामारी की वजह से डिमांड-सप्लाई चेन में रुकावट आई और अब यूक्रेन में रूस के युद्ध ने बांग्लादेश की उन परेशानियों को बढ़ा दिया जो 2020 से बहुत पहले से मौजूद थीं।

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ बांग्लादेश स्टडीज के अध्यक्ष अली रियाज के मुताबिक,”यह एक संकट की स्थिति है जो सरकार के कुप्रबंधन से उभरी है.भले ही COVID संकट नहीं था,भले ही यूक्रेन संकट नहीं था,बांग्लादेश अभी भी इस संकट में नींद में चल रहा था।” ये जगजाहिर है कि रूस-यूक्रेन जंग ने दुनिया भर में ऊर्जा की लागत को बढ़ा दिया है, लेकिन यह बांग्लादेश ऊपर खास तौर पर बहुत भारी पड़ा है।

दरअसल ये देश अपने कुल तेल और परिष्कृत ईंधन का लगभग 77 फीसदी हिस्सा आयात करता है। देश का भारी ईंधन संकट बिजली को चालू रखने की क्षमता पर गहरा असर डाल रहा है। यहां पूरे देश में 10 -10 घंटे की बिजली कटौती की जा रही है जो यहां के लोगों को अंधेरे में धकेल रही है। बाकी आग में घी डालने का काम सरकार ने कर डाला है।

पावर ग्रिड को चालू रखने के लिए बांग्लादेशी सरकार ने कई प्राइवेट बिजली देने वालों से कॉन्ट्रैक्ट किया। मांग के मुताबिक बिजली न देने पर भी सरकार इन लोगों को सब्सिडी देती है और भुगतान करती है। दरअसल इस साल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल बांग्लादेश की जारी की गई एक रिपोर्ट में तीनों बिजली संयंत्र परियोजनाओं की जांच में भ्रष्टाचार के सबूत मिले हैं।

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आईएमएफ की मदद कैसे आएगी काम?
आईएमएफ के मुताबिक, “बांग्लादेश की मदद की मांग यूक्रेन में चल रहे युद्ध की वजह से आने वाली आर्थिक बाधाओं से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने और जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए व्यापक आर्थिक जोखिमों का प्रबंधन करने के कामों को सहारा देने का हिस्सा है।” लेकिन बांग्लादेश के मदद मांगने का केवल ये एक ही मकसद नहीं है. दरअसल भले ही बांग्लादेश इन तात्कालिक चुनौतियों से निपटता है, लंबे समय से चले आ रहे जलवायु परिवर्तन, निजी निवेश जैसे मुद्दों को हल करना भी उसके लिए अहम है।

इसमें जलवायु परिवर्तन से पैदा होने जा रही आर्थिक अस्थिरता का खतरा भी शामिल है। बांग्लादेश के लिए साल 2031 तक सबसे कम विकसित देश और मध्य-आय का दर्जा हासिल करने के लक्ष्य तक सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए कुछ बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। इनमें अपनी बीती कामयाबियों को आधार बनाकर विकास की रफ्तार बढ़ाने,निजी निवेश को आकर्षित करने,उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने जैसे मुद्दे अहम है।


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