नेताओं को भी प्राइवेसी का हक,पब्लिक सब कुछ नहीं जान सकती…सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 3 बड़ी बातें

नेताओं को भी प्राइवेसी का हक,पब्लिक सब कुछ नहीं जान सकती…सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 3 बड़ी बातें
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इस हफ्ते चुनावी प्रक्रिया से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया। अदालत ने अरुणाचल प्रदेश के तेजू से निर्दलीय विधायक कारिखो क्रि के चुनाव को बरकरार रखा है। इस तरह,सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाई कोर्ट के जुलाई 2023 वाले फैसले को रद्द कर दिया। HC का फैसला इस आधार पर था कि कारिखो ने नामांकन पत्रों में तीन गाड़ियां होने की बात नहीं बताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले को रद्द करते हुए तीन अहम टिप्‍पणियां कीं। अदालत ने कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को भी ‘निजता का अधिकार’ है। SC ने कहा कि वह इससे सहमत नहीं कि उम्मीदवार को अपनी जिंदगी वोटर के सामने रख देनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कोई उम्मीदवार हर संपत्ति का खुलासा करे, यह जरूरी नहीं है। मतदाता को उम्मीदवार के बारे में सब कुछ जानने का ‘परम अधिकार’ नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधायक ने जो घोषित नहीं किया, वह 8।4 करोड़ रुपये की घोषित संपत्ति के मुकाबले ‘नगण्य’ था। SC के मुताबिक, हर नॉन-डिस्क्लोजर बड़ी चूक नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 के बीच, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण है।

‘नेताओं को भी प्राइवेसी का अधिकार’
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से नेताओं ने थोड़ी राहत की सांस जरूर ली होगी। सोशल मीडिया के दौर में नेताओं के साथ उनका परिवार भी घुन की तरह पिस जाता है। कोई बखेड़ा होने पर परिवार के सदस्यों की निजी जानकारियां पब्लिक डोमेन में आ जाती हैं। कोई मसाला मिल जाए तो मीडिया से लेकर नेता तक, चटखारे लेकर चर्चा करते हैं। यहां तक कि तलाक से लेकर सेक्सुअल पसंद-नापसंद जैसे बेहद निजी विषय जनता तक पहुंच जाते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने इसी को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि निजता का अधिकार नेताओं के लिए भी है। SC ने कहा कि ‘निजता का अधिकार’ उन मामलों में बरकरार रहेगा जो मतदाता के लिए चिंता का विषय नहीं हैं या सार्वजनिक पद के लिए उम्मीदवारी के लिए अप्रासंगिक हैं।’

‘उम्मीदवार को जानने का वोटर का अधिकार सीमित’
हर उम्मीदवार चुनाव से पहले अपनी संपत्ति और मुकदमों का ब्योरा पब्लिक के सामने रखेगा। यह नियम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सुधार की नीयत से लागू किया गया था। सुप्रीम कोर्ट को नहीं लगता कि ‘एक उम्मीदवार को मतदाताओं की स्क्रूटनी के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने की जरूरत’ है। अदालत ने कहा कि ‘किसी उम्मीदवार के स्वामित्व वाली हर संपत्ति का खुलासा न करना कोई दोष नहीं माना जाएगा, किसी बड़े चरित्र का दोष तो बिल्कुल भी नहीं।’

कारिखो क्रि के मामले में SC ने कहा है उम्मीदवार के बारे में जानने का वोटर का अधिकार ‘संपूर्ण’ नहीं है। मतलब यह कि वोटर को नेता के बारे में सब कुछ जानने का हक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नेताओं की जांच अहम है लेकिन जानकारी केवल सार्वजनिक पद और निजी व्यवहार तक सीमित होनी चाहिए।

वोटर और उम्मीदवार के बीच संतुलन की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का सेंट्रल प्‍वॉइंट प्रोपोर्शनैलिटी टेस्ट यानी आनुपातिकता परीक्षण था। कोर्ट ने कहा कि नॉन-डिस्क्लोजर को ‘दोष’ मानने के लिए, भले ही मामूली दोष हो, बड़ी संपत्ति की जरूरत होगी, या जिससे उम्मीदवार की लाइफस्टाइल का पता चलता हो। क्रि के मामले में तीन गुड़िया- एक स्कूटी, एक मोटरसाइकिल और एक नॉर्मल वैन की जानकारी नहीं दी गई थी।

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चाहे जितने नियम बन जाएं, जनता जैसा चाहती है, नेता एकदम वैसा ही व्यवहार करेंगे, संभव नहीं लगता। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से एक बैलेंस बनाने की कोशिश की है। वोटर को उम्मीदवार को परखने के लिए जरूरी जानकारी भी मिल जाए और नेता की निजता का उल्लंघन भी न हो।


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