ध्रुवतारा जैसे साहित्यपुरुष: श्रद्धेय पंडित मनु शर्मा
पूर्वांचल की साहित्यिक ऊर्जा, जनवार्ता का संघर्ष और सृजन-चेतना: एक तिरछी रोशनी में मनु शर्मा की स्मृति

काशी की धरती सदियों से ज्ञान, साधना और सृजन की राजधानी रही है। इसी पुण्यभूमि ने अनेक शब्द-साधकों को जन्म दिया, जिन्होंने लोकभावना को अपनी लेखनी का विषय बनाया। उन शीर्षस्थान पर विराजमान हैं श्रद्धेय हनुमान प्रसाद शर्मा “मनु शर्मा” ऐसे साहित्यपुरुष, जिनके शब्दों ने विचार को चेतना और चेतना को आंदोलन बना दिया।
उनकी 98वीं जयंती पर काशी ने उन्हें केवल स्मरण नहीं किया, बल्कि साहित्य का उत्सव मनाया। मनु शर्मा जी का जीवन इस सत्य का प्रतीक रहा कि जब कलम ईमानदार होती है, तो वह युग का इतिहास रच देती है।उनका कालजयी स्तंभ “संकटमोचन” जनवार्ता की आत्मा रहा। सत्रह वर्षों तक वे इस स्तंभ के माध्यम से जनजागरण की ज्योति जलाते रहे। इमरजेंसी के उस भीषण दौर में, जब अभिव्यक्ति पर सेंसर की तलवार लटक रही थी, तब भी उनकी लेखनी निर्भीक रही। उनके हर शब्द में सत्य की गर्जना थी, हर पंक्ति में लोकचिंतन की प्रतिज्ञा। पाठकों को प्रतीक्षा रहती थी कि कब ‘संकटमोचन’ का अगला चिंतन आए और आत्मा को झकझोर जाए।
जनवार्ता के संस्थापक स्वर्गीय बाबू भूलन सिंह जी ने जिस अखबार की नींव डाली, वह केवल समाचार का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का दस्तावेज बना।श्यामाचरण प्रदीप जी, पंडित ईश्वरदेव मिश्र के संपादन और मनु शर्मा, धर्मशील चतुर्वेदी, चतुरी चाचा, ईश्वरचंद्र सिन्हा,इन्द्रदेव सिंह या बाबू विवेकी राय जैसे रचनाकारों की संगति ने जनवार्ता को पूर्वांचल का साहित्यिक तीर्थ बना दिया।मनु शर्मा जी की लेखनी में वह अलभ्य संक्षिप्तता थी जो केवल सिद्ध साधकों के पास होती है, दो पंक्तियों में समूचा दर्शन कह जाने की क्षमता। जयप्रकाश नारायण जैसे लोकनायक का यह कहना कि “विचारों की सच्ची दिशा जाननी हो तो जनवार्ता पढ़ो”, मनु शर्मा के लेखन की साक्षात मुहर है।
पंडित मनु शर्मा की विरासत आज उनके यशस्वी पुत्र हेमंत शर्मा में जीवंत है। हेमंत शर्मा न केवल देश के शीर्षस्थ पत्रकारों और लेखकों में गिने जाते हैं, बल्कि वे जनवार्ता परिवार, काशी की साहित्यिक परंपरा और अपने पिता की स्मृतियों को निरंतर सहेजने,आगे बढ़ाने वाले उत्सवधर्मी व्यक्ति हैं। उनकी साहित्यिक ऊर्जा, समाजशास्त्र और पत्रकारिता का योगदान समकालीन हिंदी जगत की धड़कन बन चुकी है। काशी में हुए प्रत्येक आयोजनों, स्मृति पर्वों और बैठकों में वे सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। किताबों के विमोचन से लेकर साहित्योत्सव तक, वे संस्कारी परिवार के आदर्श वारिस हैं।

हेमंत शर्मा की सहजता, संवेदनशीलता और अपने पुरोधा पिता के प्रति श्रद्धा देखकर यही लगता है कि “पुत्र पिता का विस्तार” हैं। वे अपनी लेखनी, पत्रकारिता और सामाजिक संवेदना में मनु शर्मा की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उस विरासत में भाषा की चुटीलता, चिंतन की प्रांजलता और परंपरा की समन्विता है।
समय बदलता रहा, पर जनवार्ता अखबार ने अपने संस्कारों को बचाए रखा। अखबार के साथ आज उसका डिजिटल रूप भी उसी तेजस्वी परंपरा का उत्तराधिकारी है, जिसमें मनु शर्मा जी की विचारधारा अब भी स्पंदित होती है।
काशी की गलियों में अब भी उनकी स्मृतियाँ चाय की भाप और संवाद की गर्माहट में तैरती हैं। बेरी जी के घाट से लेकर सराय गोबर्धन तक के रास्ते में आज भी लगता है जैसे पंडित मनु शर्मा और उनके समवर्ती साहित्यकार किसी अगली चर्चा के लिए बढ़ चले हों।
धन्य है यह काशी, धन्य हैं उसके कर्मयोगी साहित्य-ऋषि और धन्य है वह पत्रकारीय प्रवाह जिसकी धार में पंडित मनु शर्मा जैसे रचनाकार आज भी जीवित हैं। जनवार्ता उनके विचारों की ज्योति से आलोकित है और रहेगी, जब तक शब्दों का संसार रहेगा।

लेखक: डॉ राज कुमार सिंह, संपादक, जनवार्ता

