तिलौरी गांव में महिला सफाईकर्मी की लापरवाही से चरमराई सफाई व्यवस्था, ग्रामीणों में आक्रोश

तिलौरी गांव में महिला सफाईकर्मी की लापरवाही से चरमराई सफाई व्यवस्था, ग्रामीणों में आक्रोश

चकिया (चंदौली) (जनवार्ता)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन को धरातल पर पलीता लगाते हुए चकिया ब्लॉक मुख्यालय से सटे तिलौरी गांव में सफाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो चुकी है। ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में नियुक्त दो सफाईकर्मियों में से महिला सफाईकर्मी महीनों से गांव में दिखाई ही नहीं देतीं। उनके राजनीतिक संरक्षण के चलते शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती। परिणामस्वरूप गांव में गंदगी का अंबार लग गया है, तालाब और नालियों में जाम से जल निकासी ठप हो गई है और खेतों में पानी भरकर किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं। स्थिति यह है कि संक्रमण और संक्रामक बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है।

गंदगी और जलजमाव से ग्रामीण परेशान

ग्रामीणों ने बताया कि गांव की नालियों और सार्वजनिक स्थानों पर महीनों से झाड़ू तक नहीं लगी। तालाब के किनारे सफाई न होने के कारण पानी की निकासी पूरी तरह बाधित है। इससे तालाब का गंदा पानी फैलकर खेतों में चला गया, जिससे धान और सब्जी की फसलें जलमग्न हो गईं। किसानों का कहना है कि उनकी मेहनत और लागत पर पानी फिर गया है। वहीं, जगह-जगह कचरे और गंदगी के ढेर से मच्छर, मक्खी और बदबू फैल रही है। बच्चों और बुजुर्गों में संक्रमण की आशंका को लेकर लोग दहशत में हैं।

ग्रामीणों का वर्जन

गांव निवासी रामाश्रय यादव ने बताया – “हमारे गांव में महिला सफाईकर्मी सिर्फ वेतन लेने आती हैं। सफाई के नाम पर एक झाड़ू भी नहीं चलातीं। मजबूरी में हमें अपने घर और आसपास की सफाई खुद करनी पड़ती है।”

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ग्रामवासी कलीम ने कहा – “तालाब की निकासी पर सफाई न होने से गंदा पानी रुका हुआ है। उसमें मच्छर पनप रहे हैं। बरसात में यह स्थिति और भयावह हो सकती है। बच्चे और महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।”

वहीं, कोमल ने आरोप लगाया – “महिला सफाईकर्मी को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। इसी कारण वह बेखौफ हैं। शिकायत के बाद भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। इसका खामियाजा पूरे गांव को भुगतना पड़ रहा है।”

गांव के ही एक किसान डिम्पल ने कहा – “हमारी फसलें पूरी तरह पानी में डूब गई हैं। धान और सब्जी की खेती बर्बाद हो गई। यह सब तालाब और नालियों की निकासी न होने के कारण हुआ है। सफाईकर्मी ने समय रहते अपना काम किया होता तो यह स्थिति नहीं आती।”

मजबूरी में खुद कर रहे सफाई

ग्रामीणों का कहना है कि गांव की सफाई व्यवस्था ठप हो जाने के बाद लोग अपने घरों और गलियों के सामने खुद झाड़ू लगाते हैं। लेकिन सामूहिक स्थान, नालियां और तालाब की सफाई उनके बस से बाहर है। ऐसे में गंदगी और जलभराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

कार्रवाई की उठी मांग

महिला सफाईकर्मी की लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये से परेशान ग्रामीण अब संगठित होकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने निर्णय लिया है कि वे हस्ताक्षर अभियान चलाकर जिलाधिकारी और डीपीआरओ चंदौली को लिखित शिकायत करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस बार भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।

राजनीतिक संरक्षण बना बाधा

ग्रामीणों के आरोपों के मुताबिक, महिला सफाईकर्मी को स्थानीय राजनीति का संरक्षण प्राप्त है। यही वजह है कि उनकी अनुपस्थिति और लापरवाही के बावजूद विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे रहते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक राजनीतिक दबाव नहीं हटेगा, तब तक गांव की सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो सकती।

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अधिकारियों की भूमिका पर सवाल

ग्रामीणों ने ब्लॉक स्तर और ग्राम पंचायत स्तर पर कई बार शिकायत की, लेकिन हर बार मामले को टाल दिया गया। ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारी कागजों में सफाई दिखाकर खानापूर्ति कर देते हैं, जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। इस रवैये ने गांव की स्थिति और बदतर कर दी है।

तिलौरी गांव का यह मामला न केवल स्थानीय सफाईकर्मी की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह राजनीतिक संरक्षण और अधिकारियों की उदासीनता से स्वच्छ भारत मिशन जैसे महत्वाकांक्षी अभियान की धज्जियां उड़ रही हैं। गंदगी, जलभराव और संक्रमण के खतरे से जूझ रहे ग्रामीण अब जिला प्रशासन की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।

ग्रामीणों की एकजुटता और लिखित शिकायत के बाद देखना होगा कि जिम्मेदार अधिकारी महिला सफाईकर्मी पर कब और कैसी कार्रवाई करते हैं, ताकि गांव की सफाई व्यवस्था पटरी पर लौट सके।

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