क्यों डी-डॉलराइजेशन की तरफ बढ़ रही दुनिया,क्या रुपया बनेगा रिजर्व करेंसी?

क्यों डी-डॉलराइजेशन की तरफ बढ़ रही दुनिया,क्या रुपया बनेगा रिजर्व करेंसी?

नई दिल्ली। क्या भारत की करेंसी रुपया रिजर्व करेंसी का स्टेटस हासिल कर सकता है ? इन दिनों से ये सवाल बड़े ही जोरशोर के साथ उठाया जा रहा है। देस दुनिया के कई जानकारों का मानना है कि अमेरिकी करेंसी डॉलर के अलावा दुनिया में एक और करेंसी को रिजर्व करेंसी का स्टेट मिलना चाहिए जिससे अमेरिकी डॉलर के दबदबे को चुनौती दी जा सके। साथ ही नॉस्ट्रो अकाउंट पर भी इसी का कंट्रोल है।

rajeshswari

क्या रुपया बनेगा रिजर्व करेंसी?
हाल ही में कोटक महिंद्रा बैंक के चेयरमैन उदय कोटक ने कहा था कि भारतीय करेंसी रुपया रिजर्व करेंसी का स्टेटस हासिल करने में सबसे आगे है। उन्होंने कहा था कि यूरोपीय देश यूरो को रिजर्व करेंसी नहीं बना सकते क्योंकि यूरोप बिखरा हुआ है। यूके और जापान की अब वो हैसियत नहीं है कि पाउंड और येन को रिजर्व करेंसी बना सके। चीन पर दुनिया भरोसा नहीं करती है इसलिए युआन रिजर्व करेंसी नहीं बन सकता है। ऐसे में भारतीय रुपया रिजर्व करेंसी बनने के लिए सबसे प्रबल दावेदार हो सकता है।

एम्बिट एसेट मैनेजमेंट के मुताबिक 2020 तक ग्लोबल ट्रेड में चीन की हिस्सेदारी 15 फीसदी है लेकिन भरोसे के अभाव और चीन के इकोनॉमिक सिस्टम में गवर्नेंस के चलते विश्व के विदेशी मुद्रा भंडार में उसी हिस्सेदारी 3 फीसदी से भी कम है। जबकि भारतीय अर्थव्यसस्था को चीन के मुकाबले रेग्यूलेटरों के पारदर्शिता भरोसमंद और स्थिरता के चलते बेहतर स्थिति में है। अगर अगले कुछ दशकों में भारत एक आर्थिक महाशक्ति बन सकता है और वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ती है तो डॉलर की जगह रुपये को डॉलर के विकल्प के रूप में स्वीकार्यता जरुर बढ़ जाएगी।

इसे भी पढ़े   बैंक मैनेजर पर बदमाशों ने एसिड अटैक किया,हालत गंभीर

क्या है De-Dollarization?
रिजर्व करेंसी के तौर पर अमेरिकी करेंसी डॉलर के पर निर्भरता घटाने को डी-डॉलराइजेशन कहा जाता है। जिसे अलग-अलग देश ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं. कच्चे तेल से लेकर दूसके कमोडिटी, अपने विदेशी मुद्रा भंडार को भरने के लिए डॉलर्स खरीदते हैं साथ द्विपक्षीय ट्रेड के लिए भी डॉलर का इस्तेमाल किया जाता है। 1920 में डॉलर ने रिजर्व करेंसी के तौर पर पाउंड स्टर्लिंग की जगह ली थी। जापान और चीन लगातार डि-डॉलराइजेशन के तरफ कदम बढ़ा रहे हैं।

क्यों हो रही डि-डॉलराइजेशन की बात
वैश्विक तनाव, ट्रेड वॉर, आर्थिक प्रतिबंध ऐसे प्रमुख वजहें हैं जिसके चलते दुनिया में डी-डॉलराइजेशन को लेकर बहस चल रही है। रूस इसकी अगुवाई कर रहा है चीन, ईरान, लैटिन अमेरिकी देश रूस का साथ दे रहे हैं। रूस वे 80 बिलियन डॉलर ऑफलोड किया है। अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को इन दिनों एक के बाद एक तगड़ा झटका लग रहा है। रूस और चीन के सेंट्रल बैंक अब कम डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार रखने लगे हैं और युआन में लेन-देन कर रहे हैं। रूस और चीन के लगता है कि अमेरिका और उसकी ताकतवर करेंसी डॉलर को सबसे बड़ी चुनौती दी जा सकती है और अमेरिका के आर्थिक ताकत पर चोट की जा सकती है।

हाल ही में सऊदी अरब ने चीन को तेल बेचने पर करेंसी के तौर पर युआन को स्वीकार करने की मंजूरी दे दी है। साथ ही कच्चे तेल के दाम तय भी युआन में किया जाएगा जो अब तक डॉलर में होता रहा है। भारत भी दूसरे करेंसी के जरिए रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है। लैटिन अमेरिकी देश अर्जेटीना ने भी फैसला किया है चीन के किए जाने वाले आयात के लिए वो चीनी करेंसी युआन में भुगतान करेगा। ये सब चीनी करेंसी युआन की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। पर पेंच ये है कि ज्यादातर देश चीन की विस्तारवादी नीतियों और पारदर्शिता के अभाव के चलते उसपर भरोसा नहीं करते हैं।

इसे भी पढ़े   योगी सरकार ने यूपीवालों को क्‍या-क्‍या दिया,बजट से जुड़ी हर बड़ी बात

डॉलर के वर्चस्व को चुनौती
डॉलर को ऐसे ही झटका लगता रहा तो अमेरिका के इतिहास में उसे लगने वाला ये सबसे बड़ा झटका होगा क्योंकि डॉलर को पूरी दुनिया के खिलाफ अपने सबसे बड़े हथियार रूप में अमेरिका इस्तेमाल करता आया है। दुनिया के 20 फीसदी आउटपुट यानि उत्पादन पर अमेरिका का कब्जा है। ग्लोबल सेंट्रल बैंकों में रखे 60 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर है। डॉलर अमेरिका को उसे वैश्विक राजनीति और आर्थिक पटल पर सबसे बड़ी ताकत प्रदान करता है।

एम्बिट एसेट मैनेजमेंट के मुताबिक डी-डॉलराइजेशन के बाद जो भी करेंसी रिजर्व करेंसी बनेगी उसकी हिस्सेदारी डॉलर के समान नहीं हो पाएगी। लेकिन अनेक देशों वाले समूहों के अपने रिजर्व करेंसी जरुर हो सकते हैं जैसे BRICS, Quad या फिर खाड़ी के देश यूरो के समान अपनी एक करेंसी बना लें।

Shiv murti

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *