स्वामी विवेकानंद को काशी में हो गया था अपनी मृत्यु का आभास

स्वामी विवेकानंद को काशी में हो गया था अपनी मृत्यु का आभास
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वाराणसी | स्वामी विवेकानंद को काशी में अपनी मृत्यु का आभास हो गया था। एलटी कॉलेज परिसर के गोपाल लाल विला में उन्होंने प्रवास किया था। इसे आज भी स्मारक बनने का इंतजार है। जयंती और पुण्यतिथि पर हर साल जनप्रतिनिधि उन्हें याद करने पहुंचते हैं, लेकिन इसे मूर्त रूप देने की कवायद आज तक नहीं हो सकी।

स्वामी विवेकानंद पांच बार काशी आए थे। उन्होंने इसका जिक्र अपने पत्र में भी किया था। 1902 में जब वो बनारस आए तो बीमार थे। वह विला में ठहरे व एक माह तक स्वास्थ्य लाभ किया। नौ फरवरी 1902 को स्वामी स्वरूपानंद को लिखे पत्र में स्वामी जी ने कहा था कि काशी प्रवास के दौरान बौद्ध धर्म के बारे में बहुत सा ज्ञान प्राप्त हुआ। स्वामी विवेकानंद ने दूसरा पत्र 10 फरवरी को ओली बुल को लिखा था और इसमें काशी के कलाकारों की प्रशंसा की थी। 12 फरवरी को भगिनी निवेदिता को लिखे गए पत्र में आशीर्वाद देते हुए लिखा था कि यदि श्रीराम कृष्ण सत्य हों तो उन्होंने जिस प्रकार जीवन में मार्गदर्शन किया है ठीक उसी प्रकार तुम्हें भी मार्ग दिखाकर अग्रसर करते रहें।

चौथे पत्र में स्वामी ब्रह्मानंद को 12 फरवरी को लिखते हुए आदेशित किया कि प्रभु के निर्देशानुसार कार्य करते रहना। 18 फरवरी को पांचवां पत्र ब्रह्मानंद और 21 फरवरी को स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि कलकत्ते और इलाहाबाद में प्लेग फैल चुका है, काशी में फैलेगा कि नहीं, नहीं जानता…। सातवें और अंतिम पत्र में 24 फरवरी को स्वामी जी ने पत्र का जवाब नहीं लिखने पर नाराजगी जताई और लिखा कि एक मामूली सी चिट्ठी लिखने में इतना कष्ट और विलंब। …तो मैं चैन की सांस लूंगा। पर कौन जानता है उसके मिलने में कितने महीने लगते हैं… और 4 जुलाई 1904 को वे महा समाधि में लीन हो गए।
बचपन में था विश्वेश्वर नाम
केंद्रीय देव दीपावली समिति के वागीश शास्त्री ने बताया कि 12 जनवरी, 1863 को उनका जन्म हुआ और मां ने उनका बचपन का नाम विश्वेश्वर रखा। बाद में जब स्कूल में गए तो नरेंद्रनाथ नाम रखा गया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने पर स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने गए। संकठा मंदिर के पीछे स्थित कात्यायनी मंदिर के गर्भगृह में आत्मविश्वेश्वर महादेव विराजमान हैं। कहा जाता है कि आत्मविश्वेश्वर की कृपा से ही स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था।

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राजा पीएन टैगोर की संपत्ति थी गोपाल लाल विला
तीस साल चली कानूनी लड़ाई के बाद पश्चिम बंगाल सरकार को मिले सात लाख

गोपाल लाल विला को स्मारक बनवाने के लिए प्रयास कर रहे नित्यानंद राय एडवोकेट बताते हैं यह राजा पी एन टैगोर की संपत्ति थी, जो बाद में वेस्ट बंगाल एडमिनिस्ट्रेटर जनरल में निहित हो गई। जो मुकदमेबाजी अधिग्रहण के बाद शुरू हुई वो कलेक्टर वाराणसी और एडमिनिस्ट्रेटर जनरल वेस्ट बंगाल के बीच सुप्रीम कोर्ट तक चली। मकान का महत्व इसलिए है कि क्योंकि स्वामी जी अपने निर्वाण से पहले फरवरी 1902 में यहां आए थे।
तीस साल चली कानूनी लड़ाई के बाद संपत्ति की कुल कीमत पश्चिम बंगाल सरकार को सात लाख रुपये मिली थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतना पुराना मकान होते हुए भी गोपाल लाल विला अभी भी बहुत मजबूत और उपयोगी है। गोपाल लाल विला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। कभी यह 25 हजार स्क्वायर फीट क्षेत्रफल में फैला हुआ था। इसमें 35 कमरे और हाल था। मकान में फर्श मार्बल के और दरवाजे व खिड़कियां वर्मा टीम के बने हुए थे। 23.66 एकड़ जमीन में 431 फल के पौधे, 13 लकड़ी के पौधे, 12 बांस के झुरमुट थे। संयोग की बात है कि प्रदेश सरकार ने इस जमीन को शिक्षा विभाग के लिए अधिगृहीत करने के लिए जो नोटिफिकेशन जारी किया था वह तारीख चार जुलाई थी। यानी स्वामी विवेकानंद के निर्वाण की तिथि चार जुलाई 1959 को जमीन अधिग्रहीत की गई। टैगोर नगर भी गोपाल लाल विला का ही भाग है और कभी एक ही चहारदीवारी से घिरी थी।

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