मां शैलपुत्री देवी की महिमा अपरंपार है।प्रसन्न होने पर भक्त की हर मनोरथ मां पूर्ण करती हैं।
मां भगवती का पहला स्वरूप मां शैलपुत्री हैं। नवरात्रि के पहले दिन भक्त, मां के इसी स्वरूप की आराधना करते हैं। मां का यह स्वरूप लावण्यमयी एवं अतिरूपवान है। दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए मां शैलपुत्री अपने वाहन वृषभ पर विराजमान रहती हैं। उनके हाथ में सुशोभित कमल पुष्प, अविचल ज्ञान और शांति का प्रतीक है। भगवान शंकर की भांति उनका भी निवास पर्वतों पर है। मां शैलपुत्री की उपासना में योगी और साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। इसी स्थान से योग साधना का आरंभ होता है। मां, साधक को साधना में लीन होने की शक्ति, साहस और बल प्रदान करती हैं, साथ ही आरोग्य का वरदान भी देती हैं। मां शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं पर अपनी कृपा बरसाती हैं। जो भी उनकी पूजा-उपासना श्रद्धा भक्ति के साथ करता है, मां उन्हें अभयदान देती हैं। मां शैलपुत्री अपने भक्तों को आकस्मिक आपदाओं से भी मुक्त रखती हैं। उन्हें धन-वैभव, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाती हैं।
मां की पूजा में सफेद और लाल रंग का महत्व है: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद या लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। गाय के दूध से बने पकवान एवं मिष्ठान्न का भोग लगाने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं और दरिद्रता को दूर कर भक्त के परिवार के सभी सदस्यों को रोग मुक्त करती हैं। मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए कन्या को कंघा, हेयर ब्रश, हेयर क्रीम या बैंड उपहार में दें। पिपरमिंट युक्त मीठे मसाले का पान, अनार या गुड़ से बने पकवान का भी अर्पण किया जा सकता है। तत्पश्चात सपरिवार आरती करें।
वाराणसी में मां का मंदिर अलईपुरा क्षेत्र में स्थित है।वही नौ गौरी में प्रथम मुख निर्मालिका गौरी का दर्शन गायघाट स्थित हनुमान मंदिर में होता है।