काशी तमिल संगमम् 4.0 : नमो घाट पर स्टॉल नं. 29 बना सबसे बड़ा आकर्षण
सात पीढ़ियों पुरानी काष्ठ-कला ने मोहा मन

वाराणसी (जनवार्ता) । नमो घाट पर चल रहे काशी तमिल संगमम् 4.0 में वाराणसी की प्राचीन काष्ठ-कला एक बार फिर सुर्खियों में है। स्टॉल नंबर 29 पर सजे डीसी हैंडीक्राफ्ट्स के स्टॉल पर आने वाले हर आगंतुक की नजरें ठहर जा रही हैं। सात पीढ़ियों से चली आ रही यह अनूठी लकड़ी की कला आज शहर में सिर्फ दो भाइयों ओम प्रकाश शर्मा और नंद लाल शर्मा के हाथों ही जीवित है।

पारंपरा के ये आखिरी संरक्षक कभी आर्थिक तंगी और घटती मांग के कारण हताश हो चुके थे। दोनों भाइयों का कहना है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से उनसे मुलाकात की, उनकी कला देखी और उन्हें प्रेरित किया कि इस विरासत को किसी भी कीमत पर जीवित रखें। उसी प्रेरणा का परिणाम है कि आज उनकी कला काशी तमिल संगमम् जैसे राष्ट्रीय मंच से लेकर G7 शिखर सम्मेलन तक पहुँच चुकी है। 2022 में उनकी बनाई भव्य ‘राज गद्दी-राम दरबार’ को प्रधानमंत्री ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को उपहार में दी थी।
स्टॉल का सबसे बड़ा आकर्षण है पूरी तरह हाथ से तराशी गई पंचमुखी हनुमान जी की विशाल मूर्ति। कालमा, कदम और गूलर की लकड़ी से बनी इस मूर्ति को बनाने में कलाकारों ने छह महीने लगाए। कीमत करीब 1.20 लाख रुपये। खास बात यह कि इनकी लघु काष्ठ-कलाएँ सिर्फ दोपहर 12 से 2 बजे के बीच प्राकृतिक सूर्य-प्रकाश में ही बनाई जा सकती हैं; कृत्रिम रोशनी में इतनी बारीकी संभव नहीं। चंदन जैसी सुगंध वाली ये कलाकृतियाँ देखते ही बनती हैं।
आगंतुकों की भीड़ लगी रहती है। लखनऊ से आए शिवम सिंह ने अपने पूरे परिवार के लिए लकड़ी के चाबी के छल्ले खरीदे और कहा, “इतनी सुंदर, सूक्ष्म और किफायती चीज वाराणसी की सच्ची याद बनकर रहेगी।”
दोनों कलाकार न सिर्फ कारीगर हैं, बल्कि इस कला के शिक्षक भी हैं। NIFT रायबरेली सहित कई संस्थानों में वे कार्यशालाएँ ले चुके हैं। नंद लाल शर्मा कहते हैं, “प्रधानमंत्री जी का एक शब्द हमारी जिंदगी बदल गया। आज हमारी कला देश-दुनिया देख रही है।”
काशी तमिल संगमम् का यह स्टॉल सिर्फ एक दुकान नहीं, बल्कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की जीती-जागती मिसाल है, जहाँ उत्तर की प्राचीन काष्ठ-कला और दक्षिण की संस्कृति एक ही मंच पर मिल रही हैं।

