नैना थक गए राह निहारूं | भक्ति में प्रतीक्षा और प्रेम का अनमोल भाव

“नैना थक गए राह निहारूं” — यह पंक्ति उस भक्त की पुकार है जो अपने प्रभु के दर्शन के लिए व्याकुल है। यह केवल आँखों की थकान नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से निकला हुआ वह भाव है जिसमें प्रेम, भक्ति और विरह एक साथ समाहित हैं। जब भक्त अपने आराध्य का स्मरण करता है, तो प्रतीक्षा का हर पल तपस्या बन जाता है। इस भाव में भक्ति की वह सच्चाई है जो मन को नम्रता और समर्पण की ओर ले जाती है।

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नैना थक गए राह निहारूं,
कन्हैया अब देर ना करो,
कन्हैया अब देर ना करो,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

एक ही कान्हा तेरा सहारा,
दूजा ना कोई जग में हमारा,
कर ली हमने तुझसे ही यारी,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

हरदम पूजूँ नित मैं ध्याऊँ,
सबसे पहले श्याम मनाऊँ,
सुनलो मेरे मन की कहानी,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

मेरे कन्हैया श्याम मुरारी,
नाथ मेरे प्रभु तुम उपकारी,
खुद को कर दिया तेरे हवाले,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

इस भवजल का तू ही किनारा,
जो भी मनाए उसको उबारा,
ठाकुर चरणों में ‘भगवत’ गाए,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

नैना थक गए राह निहारूं,
कन्हैया अब देर ना करो,
कन्हैया अब देर ना करो,
कन्हैया अब देर ना करो,
नैना थक गए राह निहारूँ,
कन्हैया अब देर ना करो।।

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भाव से पूजन विधि

  1. दिन और समय: सोमवार या एकादशी का दिन सर्वोत्तम माना जाता है।
  2. स्थान: भगवान श्रीकृष्ण या अपने इष्टदेव की मूर्ति/चित्र के सामने बैठें।
  3. सामग्री: दीपक, धूप, पुष्प, तुलसीदल और मक्खन-मिश्री अर्पित करें।
  4. प्रारंभ: शांत मन से “हे प्रभु, दर्शन दो” भाव में ध्यान लगाएँ।
  5. भजन या जप: मधुर स्वर में “नैना थक गए राह निहारूं” भजन गाएँ या सुनें।
  6. भावना रखें: यह अनुभूति करें कि आप अपने प्रभु के दर्शन की प्रतीक्षा में हैं, और वे आपके हृदय में विराजमान हैं।
  7. समापन: अंत में प्रार्थना करें — “हे प्रभु, मेरे मन की तृष्णा केवल आपके दर्शन से पूर्ण हो।”

इस भाव से भक्ति करने के लाभ

  • मन की शुद्धि: प्रभु की प्रतीक्षा में मन से सभी नकारात्मक भाव मिटते हैं।
  • भक्ति की गहराई: प्रतीक्षा से भक्ति और भी गहन व सच्ची बनती है।
  • आंतरिक शांति: प्रभु के स्मरण से हृदय को गहरी शांति मिलती है।
  • आत्मिक जागृति: यह भाव आत्मा को ईश्वरीय प्रेम से जोड़ता है।
  • दिव्य कृपा: प्रभु की करुणा शीघ्र प्राप्त होती है, जब भक्ति सच्चे प्रेम से की जाए।

निष्कर्ष

“नैना थक गए राह निहारूं” — यह वाक्य हर भक्त के हृदय की सच्ची अभिव्यक्ति है। जब प्रभु दूर लगते हैं, तब यह विरह भी एक उपहार बन जाता है क्योंकि वही हमें सच्चे समर्पण की ओर ले जाता है। प्रतीक्षा में भले ही आँसू हों, पर उन आँसुओं में प्रेम और विश्वास की चमक होती है। आखिरकार, जब प्रभु कृपा दृष्टि डालते हैं, तो सारी थकान मिट जाती है और हृदय में केवल आनंद और शांति का प्रकाश रह जाता है।

Shiv murti

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