एक हरि को छोड़ किसी की चलती नहीं है मनमानी
“एक हरि को छोड़ किसी की चलती नहीं है मनमानी” यह पंक्ति हमें जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई से परिचित कराती है — कि इस जगत में सब कुछ भगवान की इच्छा से ही होता है। मनुष्य अपनी योजनाएँ तो बना सकता है, लेकिन परिणाम हरि की मर्ज़ी पर ही निर्भर करते हैं। यह भाव अहंकार को मिटाता है और हमें नम्रता, समर्पण और श्रद्धा का पाठ पढ़ाता है। जब हम यह स्वीकार करते हैं कि प्रभु ही कर्ता, भर्ता और संहारक हैं, तब मन से बोझ उतर जाता है और जीवन सहज, सरल और शांत हो जाता है।

एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी,
चलती नही है मनमानी……
लंकापति रावण योद्धा ने,
सीता जी का हरण किया,
इक लख पूत सवालख नाती,
खोकर कुल का नाश किया,
धान भरी वो सोने की लंका,
हो गई पल मे कूल्धानि,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी……
मथुरा के उस कंस राजा ने,
बहन देवकी को त्रास दिया,
सारे पुत्र मार दीये उसने,
तब प्रभु ने अवतार लिया,
मार गिराया उस पापी को,
था मथुरा मे बलशाली,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…..
भस्मासुर ने करी तपस्या,
शंकर से वरदान लिया,
शंकर जी ने खुश होकर उसे,
शक्ति का वरदान दिया,
भस्म चला करने शंकर को,
शंकर भागे हरीदानी,
एक हरी को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…….
उसे मारने श्री हरि ने,
सुंदरी का रुप लिया,
जेसा जेसा नाचे मोहन,
वेसा वेसा नाच किया,
अपने हाथ को सर पर रखकर,
भस्म हुआ वो अभिमानी,
एक हरी को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी……
सुनो सुनो ए दुनिया वालो,
पल भर मे मीट जाओगे,
गुरु चरणों मे जल्दी जाओ,
हरि चरणों को पाओगे,
भजनानद कहे हरी भजलो,
दो दिन की है ज़िन्दगानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…….
हरि स्मरण और समर्पण साधना
- समय: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त या संध्या के शांत क्षणों में।
- स्थान: अपने घर के पूजास्थल या किसी शांत स्थान पर।
- सामग्री: दीपक, धूप, तुलसीदल, जल, फूल और श्रीहरि का चित्र।
- पूजन क्रम:
- सबसे पहले दीपक जलाएँ और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करें।
- फिर यह भाव बोलें — “हे प्रभु, आपके बिना कुछ संभव नहीं, मैं सब कुछ आपको समर्पित करता हूँ।”
- कुछ समय ध्यान करें और अपने जीवन की चिंताओं को प्रभु को अर्पित करें।
- अंत में आरती करें और तुलसी दल अर्पित करें।
- भाव: मन में पूर्ण समर्पण रखें, अहंकार और नियंत्रण की भावना को त्यागें।
हरि पर विश्वास के शुभ फल
- अहंकार, क्रोध और चिंता का नाश होता है।
- मन में शांति, विनम्रता और संतोष का वास होता है।
- जीवन के कठिन निर्णयों में स्पष्टता और धैर्य प्राप्त होता है।
- प्रभु पर विश्वास गहराता है और हर स्थिति में साहस बना रहता है।
- भक्ति और आत्मसमर्पण से जीवन सरल और सफल बनता है।
निष्कर्ष
“एक हरि को छोड़ किसी की चलती नहीं है मनमानी” हमें यह एहसास कराता है कि सृष्टि के हर कण में प्रभु की इच्छा व्याप्त है। जब हम इस सत्य को हृदय से स्वीकार कर लेते हैं, तो जीवन का बोझ हल्का हो जाता है — क्योंकि फिर हमें नियंत्रण नहीं, भरोसे की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति हर स्थिति में “हरि इच्छा” कहकर स्वीकार करता है, वही सच्चा भक्त कहलाता है। प्रभु की मर्ज़ी में चलना ही जीवन की सबसे बड़ी शांति और भक्ति का मार्ग है।

