बिजली निजीकरण के खिलाफ 288वें दिन गरजी सड़कों पर आवाज
वाराणसी (जनवार्ता) : उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल (पीवीवीएनएल) और दक्षिणांचल (डीवीवीएनएल) विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के खिलाफ चल रहा आंदोलन गुरुवार को 288वें दिन भी जारी रहा। वाराणसी में हजारों बिजली कर्मचारियों ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए सरकार से निजीकरण की प्रक्रिया तत्काल रोकने की मांग की। प्रदर्शन के दौरान कर्मचारियों ने नारेबाजी की और चेतावनी दी कि दिल्ली, ओडिशा और आगरा जैसे असफल निजीकरण मॉडल की पुनरावृत्ति यूपी में होने जा रही है, जिससे उपभोक्ता और कर्मचारी दोनों प्रभावित होंगे।
सभा में वक्ताओं ने ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) की विशेषज्ञ रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट के अनुसार निजीकरण से उपभोक्ताओं को कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि अरबों की सरकारी संपत्ति औने-पौने दाम पर निजी कंपनियों को सौंप दी जाएगी। एआईपीईएफ चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने सरकार पर निजी घरानों से मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा कि जनवरी 2025 से शुरू हुई प्रक्रिया को दिवाली तक पूरा करने की जल्दबाजी उपभोक्ताओं व कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध है।
दिल्ली-ओडिशा-आगरा के मॉडल पर उठे सवाल
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि दिल्ली (2002) के निजीकरण में एटीएंडसी लॉस तो घटा, लेकिन CAG की 2015 रिपोर्ट ने निजी कंपनियों द्वारा 8,000 करोड़ की अतिरिक्त वसूली का खुलासा किया। ओडिशा (1999) में रिलायंस पावर का लाइसेंस 2015 में रद्द हुआ और बाद में टाटा पावर को सौंपने के बावजूद दरें लगातार बढ़ती रहीं। वहीं आगरा (2009, टोरेंट पावर) में CAG की 2024 रिपोर्ट ने 2,200 करोड़ रुपये बकाया न चुकाने की ओर इशारा किया। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि यूपी में भी ट्रांजेक्शन कंसल्टेंट का चयन अपारदर्शी तरीके से हो रहा है और एटीएंडसी लॉस को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है।
नौकरियों पर खतरा और राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण से प्रदेश में 70,000 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी। जून 2025 में एआईपीईएफ ने 27 लाख बिजलीकर्मियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की थी, जो जुलाई में हुई और कई राज्यों में बिजली आपूर्ति बाधित रही। ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा ने इस पर सवाल उठाए थे, लेकिन प्रक्रिया पर रोक नहीं लग सकी। वहीं यूपीपीसीएल चेयरमैन अशीष गोयल का दावा है कि निजीकरण से घाटा कम होगा, जबकि विशेषज्ञ इसे “निजी मुनाफे का खेल” बता रहे हैं।
हड़ताल तेज करने की चेतावनी
सभा में एआईपीईएफ रिपोर्ट जल्द सार्वजनिक करने की घोषणा की गई। साथ ही कहा गया कि यदि सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई तो 29 जून से शुरू हुई हड़ताल को और तेज किया जाएगा।
सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, ई. नीरज बिंद, कृष्णा सिंह, सतीशचंद्र पांडेय समेत कई नेताओं ने संबोधित किया।
कर्मचारियों ने साफ कहा कि यह आंदोलन उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के अधिकारों की लड़ाई है और सरकार को निजीकरण वापस लेना ही होगा।