ओम बिरला को क्‍यों मोदी सरकार बनाना चाहती है लगातार दूसरी बार स्‍पीकर?

ओम बिरला को क्‍यों मोदी सरकार बनाना चाहती है लगातार दूसरी बार स्‍पीकर?
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नई दिल्ली। एनडीए सरकार ने एक बार फिर से ओम बिरला को लोकसभा अध्‍यक्ष पद के लिए प्रत्‍याशी बनाया है। अगर अब तक की सभी 17 लोकसभा का इतिहास उठाकर देखें तो इस लिहाज से यदि ओम बिरला लगातार दूसरी बार स्‍पीकर बनते हैं तो एम। के अयंगर, जी। एस। ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जीएमसी बालयोगी के बाद लगातार दो लोकसभाओं के अध्‍यक्ष बनने के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे। हालांकि इनमें से बलराम जाखड़ ही अपने दोनों कार्यकाल पूरे कर सके। वह 1980 से 1989 तक लोकसभा स्‍पीकर रहे।

सर्वाधिक समय तक लोकसभा स्‍पीकर रहने का रिकॉर्ड भी जाखड़ के ही नाम दर्ज है। वह इस दौरान नौ साल 329 दिन (1980-1989) तक इस पद पर रहे। एम ए आयंगर 6 साल 22 दिन (1956-62) और जीएस ढिल्‍लों छह साल 110 दिन (1969-75) तक इस पद पर रहे।

ओम बिरला फिर से राजस्‍थान की कोटा सीट से चुनाव जीते हैं। वह पिछले 26 साल में पहले ऐसे पीठासीन अधिकारी हैं जो संसदीय चुनाव जीते हैं। ये इस चुनाव में इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है कि इतने महत्‍वपूर्ण पद पर रहते हुए भी बिरला का अपने संसदीय क्षेत्र से कनेक्‍ट बना रहा। वरना राजस्‍थान में भाजपा को अबकी बार 25 में से 14 सीटें ही मिली हैं। जबकि पिछली बार सभी सीटों पर भाजपा ही जीती थी।

इससे पहले पीएम संगमा ही ऐसे नेता रहे जो स्‍पीकर रहते हुए दूसरी बार चुनाव जीत सके। पीए संगमा 1996-98 के दौरान 11वीं लोकसभा के स्‍पीकर रहे। उसके बाद 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में वो मेघालय की तुरा सीट से जीते।

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संगमा के बाद टीएमसी लीडर जीएमसी बालयोगी स्‍पीकर बने लेकिन 2002 में उनका हेलीकॉप्‍टर दुर्घटना में निधन हो गया। उसके बाद शिवसेना नेता मनोहर जोशी स्‍पीकर बने लेकिन 2004 के चुनाव में वह हार गए। 2004 के चुनाव में मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व में यूपीए की सरकार बनी और माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी स्‍पीकर बने। लेकिन उन्‍होंने कार्यकाल खत्‍म होने के बाद सक्रिय राजनीति से संन्‍यास ले लिया और 2009 का चुनाव नहीं लड़ा। 2014 में बीजेपी नेता सुमित्रा महाजन को स्‍पीकर बनाया गया लेकिन 2019 का चुनाव उन्‍होंने भी नहीं लड़ा।

ओम बिरला का आरएसएस से जुड़ाव
ओम बिरला शुरू से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं। 1990 के दशक में भाजयुमो के माध्‍यम से संगठन रणनीतिकार के रूप में उन्‍होंने पहचान बनाई। 2003 के राजस्‍थान विधानसभा चुनाव में ओम बिरला ने कांग्रेस के दिग्‍गज नेता शांति धारीवाल को कोटा साउथ से हराकर सबको हैरान कर दिया। राम मंदिर आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए। सांगठनिक क्षमताओं को देखते हुए कहा जाता है कि अमित शाह ने 2018 के राजस्‍थान विधानसभा चुनाव में उनको संगठन को फिर से खड़ा करने की चुनौती सौंपी। वो भी तब जब राजस्‍थान में मौजूदा वसुंधरा राजे सरकार सत्‍ता विरोधी लहर का सामना कर रही थीं। हालांकि भाजपा वो चुनाव हार गई लेकिन पार्टी को हुए अपेक्षाकृत कम नुकसान का क्रेडिट ओम बिरला को दिया गया।

संसदीय इतिहास में पहली बार होगा चुनाव
भारत के संसदीय इतिहास में अभी तक आमतौर पर स्‍पीकर का चुनाव सर्वसम्‍मति से होता रहा है। लिहाजा आज तक इस पद पर कोई चुनाव नहीं हुआ है। लेकिन पहली बार पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वसम्‍मति नहीं बनने के कारण लोकसभा के अध्‍यक्ष पद पर चुनाव होने जा रहा है। लोकसभा अध्‍यक्ष का चुनाव संविधान के अनुच्‍छेद 93 के तहत किया जाता है। इसके तहत सदस्‍यों को चुनाव से एक दिन पहले अपने प्रत्‍याशियों के समर्थन का नोटिस जमा करना होता है। उसके बाद चुनाव में साधारण बहुमत के जरिये लोकसभा अध्‍यक्ष का चुनाव होता है। यानी जिस प्रत्‍याशी को आधे से ज्‍यादा सांसदों का वोट मिलता है वो स्‍पीकर बनता है। लोकसभा के स्‍पीकर सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिम्‍मेदार होते हैं। स्‍पीकर संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं और विवाद की स्थिति में नियमानुसार कार्रवाई करते हैं। स्‍पीकर से अपेक्षा होती है कि वह तटस्‍थ होकर फैसले लें।

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