2004 दोहराने की उम्मीद में कांग्रेस,क्या अपनाएगी सोनिया गांधी की अगुवाई वाली 2001 की स्ट्रैटजी
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 और भारत न्याय यात्रा की तैयारियों के लिए कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने पार्टी मुख्यालय में मैराथन बैठक की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की मौजूदगी में हुई बैठक में AICC महासचिवों, प्रभारियों,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों और राज्यों में कांग्रेस विधानसभा दल के नेताओं को बुलाया गया था। लोकसभा चुनाव 2024 में 2004 वाला परफॉर्मेंस दोहराने के लिए कांग्रेस ने कमर कसने की बात कही है। ऐसे में 2001 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में बनी स्ट्रैटजी की चर्चा स्वभाविक है।
उत्तर भारत के हिंदी भाषी तीन राज्यों में करारी हार के बाद कांग्रेस विपक्षी दलों के INDIA गठबंधन में बड़ा दिल दिखा रही है। जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इंडी अलायंस का संयोजक बनाने पर सहमत है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस 255 लोकसभा सीटों तक सिमटने का भी निर्णय ले सकती है। लोकसभा चुनाव 2019 में 421 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 52 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार कांग्रेस विभिन्न राज्यों में स्थानीय विपक्षी क्षत्रपों के सामने लचीला रुख भी अपना रही है। देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस के ये सब कदम कांग्रेस अधिवेशन 2001,बेंगलुरु में अध्यक्ष सोनिया गांधी की रणनीति से प्रभावित हैं।
कांग्रेस अधिवेशन,2001 बेंगलुरु में अध्यक्ष सोनिया गांधी ने क्या तय किया था
कांग्रेस अधिवेशन, 2001 बेंगलुरु में अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तय किया था कि लोकसभा चुनाव 2004 में 15 दलों के गठबंधन यूपीए के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ मैदान में उतरा जाएगा। हालांकि,2004 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों में समान विचारधारा वाले 6 दलों के साथ गठबंधन कर चुकी थी। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में एनसीपी, आंध्र प्रदेश में टीआरएस, तमिलनाडु में डीएमके,झारखंड में जेएमएम और बिहार में आरजेडी-एलजेपी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था। कांग्रेस को इन 5 राज्यों में बड़ा चुनावी फायदा हुआ था। हालांकि, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस का कोई गठबंधन नहीं था।
सोनिया गांधी के फॉर्मूले पर खरगे और वेणुगोपाल ने की गठबंधन समिति से चर्चा
लोकसभा चुनाव 2004 में गठबंधन वाले 5 राज्यों की 188 लोकसभा सीटों में कांग्रेस 114 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं,यूपीए की सहयोगी दलों ने 56 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी कांग्रेस के पास 2004 वाला प्लान है। कांग्रेस ने रायपुर में अपने 85वें अधिवेशन में लोकसभा चुनाव 2024 में 2004 वाला फॉर्मूला अपनाया जाना तय किया था। ठीक वैसे ही जैसे लोकसभा चुनाव 2004 के लिए बेंगलुरु अधिवेशन 2001 में सोनिया गांधी की अगुवाई में रणनीति तय की थी। विधानसभा चुनाव 2003 में भी कांग्रेस को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, लोकसभा चुनाव 2004 में कांग्रेस नीत गठबंधन ने केंद्र में सरकार बना ली थी। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने 5 सदस्यों वाली इंडिया गठबंधन समिति से सीट शेयरिंग को लेकर मुलाकात की है।
सोनिया गांधी फॉर्मूला कारगर
इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने 2004 के 15 के मुकाबले 26 दलों का बड़ा गठबंधन बनाया है। इंडिया नाम के इस अलायंस में सहयोगी दलों में पहले से ही खींचतान भी शुरू हो गई है। राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सहयोगी दलों की झिझक या असहजता को भी सोनिया गांधी ही दूर करने में लगी हैं। गठबंधन की बेंगुलरु बैठक में खास तौर पर सोनिया गांधी पहुंची भी थीं। नीतीश कुमार,लालू यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल समेत कई दिग्गजों को साधने में भी उनका ही फार्मूला काम आ रहा है। इन सभी राज्यों में कम सीटें कबूल करना, राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा के रूट में सावधानी रखना वगैरह इसी लचीले रुख का नतीजा है।
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले संसद के मानसून और शीतकालीन सत्र में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की एकता सड़क से संसद तक केंद्र सरकार के खिलाफ दिखी। भाजपा के खिलाफ विपक्ष दलों के गठबंधन को इसलिए खास माना जा रहा है क्योंकि दो दशक से ज्यादा समय के बाद सोनिया गांधी ऐसी कवायद में खुद को शामिल कर रही हैं। तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा के संसद सदस्यता रद्द होने के बाद सोनिया गांधी उनके साथ खड़ी दिखीं। सोनिया गांधी के लीड करने से सहयोगी दलों के भीतर चल रहे मनमुटाव या शंकाओं का समाधान होने की गुंजाइश बढ़ जाती है। विपक्षी दलों के कई बड़े नेताओं के साथ सोनिया गांधी के रिश्ते बेहतर रहे हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव 2004 के नतीजे के बाद गठबंधन की ओर से प्रस्तावित प्रधानमंत्री पद का उन्होंने त्याग कर दिया था।