लोकसभा में अब तक 27 दफा अविश्वास प्रस्ताव पेश,तीन बार गिरी सरकार

लोकसभा में अब तक 27 दफा अविश्वास प्रस्ताव पेश,तीन बार गिरी सरकार
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नई दिल्ली। लोकतांत्रिक तौर से चुनी हुई सरकार के खिलाफ विपक्ष को आवाज उठाने का अधिकार है। सड़क से लेकर सदन तक सरकार की नीतियों के खिलाफ विपक्ष अपनी आवाज उठाता है। सदन के भीतर कई तरह से सरकार को घेरा जाता है जिसमें से एक अविश्वास प्रस्ताव है। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष यह संदेश देता है कि सरकार में लोगों का विश्वास नहीं रह गया है। यहां इस बात की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नो कांफिडेंस नोटिस लाई है..यहां हम इतिहास के झरोखों से बताएंगे कि आजाद भारत में कितनी दफा सरकारों को अविश्वास मत का सामना करना पड़ा और नतीजा क्या रहा.साल था 1979 और देश के पीएम थे मोरारजी देसाई। उनके खिलाफ कांग्रेस की तरफ से नो कांफिडेंस पेश किया गया। दिलचस्प बात ये की इस विषय पर बहस बेनतीजा रही थी और मतदान भी नहीं हुआ था। लेकिन 1990,1997 और 1999 की तस्वीर अलग थी।

अब तक 27 दफा नो कांफिडेंस मोशन
आजादी के बाद से अब तक 27 दफा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है। अगर आप मौजूदा नो कांफिडेंस मोशन को जोड़ें तो संख्या 28 हो जाएगी। अब तक पेश 27 अविश्वास प्रस्ताव में सबसे अधिक संख्या इंदिरा गांधी के खिलाफ रही है। हालांकि वो सभी 15 अविश्वास प्रस्ताव में विजयी रहीं। लेकिन तीन सरकारें ऐसी भी रहीं जिन्हें सत्ता से हटना पड़ा। बता दें कि लोकसभा के नियम 198 के तहत चर्चा और वोटिंग होती है। अगर विपक्ष की संख्या अधिक होती है तो मौजूदा मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है।

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वी पी सिंह सदन का भरोसा जीतने में रहे नाकाम
1990 में वी पी सिंह की मिलीजुली सरकार थी। विपक्ष की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। लोकसभा में बहस और वोटिंग दोनों हुई। बहस के दौरान वी पी सिंह ने संसद सदस्यों से अंतरात्मा की आवाज पर मद देने की अपील की लेकिन वो सरकार बचा पाने में नाकाम रहे। 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह ने मंत्रिपरिषद में विश्वास प्रस्ताव पेश किया। राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा द्वारा अपना समर्थन वापस लेने के बाद प्रस्ताव गिर गया। वह प्रस्ताव 142 मतों से 346 मतों से हार गये।

1997 में देवगौड़ा नहीं बचा सके अपनी गद्दी
वी पी सिंह की सरकार के जाने के सात साल बाद यानी 1997 में पीएम एच डी देवगौड़ा को भी अविश्वास का सामना करना पड़ा लेकिन उनकी भी पराजय हुई। इसी तरह,1997 में,एचडी देवेगौड़ा सरकार 11 अप्रैल को विश्वास मत हार गई। देवेगौड़ा की 10 महीने पुरानी गठबंधन सरकार गिर गई क्योंकि 292 सांसदों ने सरकार के खिलाफ मतदान किया,जबकि 158 सांसदों ने समर्थन किया।

1 वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी
देवगौड़ा सरकार के पतन के बाद 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में आए और उन्हें भी 1999 में नो कांफिडेंस का सामना करना पड़ा और उनकी सरकार महज एक वोट की कमी से गिर गई। 1998 में सत्ता में आने के बाद,अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया था,जो 17 अप्रैल,1999 को अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की वापसी के कारण एक वोट से हार का सामना करना पड़ा।

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