पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय का निधन:आगरा में अपने आवास पर ली आखिरी सांस
आगरा। पूर्व कैबिनेट मंत्री और ब्राह्मण समाज के कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। वह पिछले कई महीने से बीमार थे। आगरा के शास्त्रीपुरम स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 65 वर्ष के थे। उनके निधन से समर्थकों में शोक की लहर है।
रामवीर उपाध्याय कई महीनों से कैंसर से पीड़ित थे। रीढ़ की हड्डी से कैंसर ब्रेन तक पहुंच गया था। इससे उन्हें पैरालिसिस हो गया। काफी उपचार के बाद वह रिकवर नहीं हुए। देर रात हृदय गति रुकने पर शास्त्रीपुरम स्थित आवास से उनके परिजन उन्हें रेनबो हॉस्पिटल भी ले गए, लेकिन उनकी सांसे थमने की वजह से चिकित्सक इलाज नहीं दे सके। उनके निधन की सूचना पर रात में ही शास्त्रीपुरम आवास पर समर्थकों की भीड़ लग गई। रामवीर उपाध्याय मूलरूप से हाथरस जिले के रहने वाले थे। आगरा के अलावा हाथरस में उनके और परिजनों के आवास हैं।
बसपा छोड़कर सादाबाद से भाजपा के टिकट पर लड़े थे चुनाव
विधानसभा चुनाव 2022 से पहले रामवीर उपाध्याय बसपा से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ब्रज क्षेत्र अध्यक्ष रजनीकांत माहेश्वरी ने शास्त्रीपुरम आवास पर उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। पूर्व डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने वर्चुअली इस कार्यक्रम को संबोधित किया था। इसके बाद वह सादाबाद विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। वोटों के कम अंतर से वह हार गए थे। वह आगरा और अलीगढ़ मंडल में ब्राह्मण समाज के दिग्गज चेहरा थे।
अस्वस्थ होने से पिछले 1 वर्ष से राजनीति में नहीं थे सक्रिय
पूर्व कैबिनेट मंत्री पिछले एक वर्ष से स्वास्थ्य खराब होने की वजह से खुद राजनीतिक कार्यक्रमों से दूर रहे। उनकी पत्नी पूर्व सांसद सीमा उपाध्याय ही उनके बदले विधानसभा चुनाव में चुनाव-प्रचार करती नजर आईं। चुनाव के बाद भी रामवीर उपाध्याय किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं दिखे। अस्वस्थ होने के कारण सोशल मीडिया के माध्यम से ही वह अपने समर्थकों से जुड़े रहे।
बसपा सरकार में हर बार रहे कैबिनेट मंत्री
रामवीर उपाध्याय बसपा सरकार में ऊर्जा,परिवहन,चिकित्सा शिक्षा और समग्र विकास आदि विभागों के मंत्री रहे थे। बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबियों में पार्टी महासचिव सतीश मिश्रा के बाद उनका दूसरा नंबर था। पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय बसपा से वर्ष 1996 में जुडे़ थे। 2007 में बसपा की सरकार बनाने में सहयोग किया था। पिछले तीन बार के चुनावों में बसपा की हार से व्यथित होकर उन्होंने बसपा का साथ छोड़ा था।