मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वतवासी
“मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वतवासी” यह पंक्ति माँ पार्वती और भगवान शिव के उस अद्भुत मिलन का भाव प्रकट करती है, जिसमें भक्ति, प्रेम और त्याग की सुगंध बसी है। यह दर्शाती है कि सच्चे प्रेम में भौतिकता या ऐश्वर्य का कोई स्थान नहीं होता — केवल समर्पण मायने रखता है। महलों की रानी पार्वती जब पर्वतवासी शिव को अपना जीवनसाथी स्वीकार करती हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि प्रेम सादगी में भी परम सुख दे सकता है। यह भक्ति गीत हमें सिखाता है कि जहाँ ईश्वर का नाम है, वहाँ वैभव की नहीं, श्रद्धा की आवश्यकता होती है।

तेरा मेरा मेल मिले ना क्या करना इस जोड़ी का,
नाथ तेरा नंदी पे चाले, तने चस्का घोड़ा गाड़ी का……
मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वत वासी,
तेरा मेरा यूं मेल नहीं, सुनले शिव भोले कैलाशी,
ओ गोरा तू ध्यान लगा अपने भोले भंडारी का,
नाथ तेरा नंदी पे चाले, तने चस्का घोड़ा गाड़ी का……
सुनले गोरा तू बात मेरी क्यों अपनी जिद पर तू है अड़ी,
बातें करती है बड़ी-बड़ी तू जल्दी घोट दे भांग मेरी,
नखरा प्यारा लगता मुझको अपनी गोरा प्यारी का,
नाथ तेरा नंदी पे चाले, तने चस्का घोड़ा गाड़ी का……
ना घोटू भोले भांग तेरी मैं अपने पीहर चाल पड़ी,
1 दिन घोटी 2 दिन घोटी, मैं घोटत घोटत हारी गई,
ना जइयो गोरा छोड़ मने, तू छोड़ दे चस्का पीहर का,
नाथ तेरा नंदी पे चाले, तने चस्का घोड़ा गाड़ी का……
शिव-पार्वती आराधना की सरल विधि
- सुबह स्नान कर शिव-पार्वती के चित्र या मूर्ति के आगे दीपक जलाएँ।
- शिवलिंग पर गंगाजल, दूध और बेलपत्र अर्पित करें, और माँ गौरी को फूल, चावल व सिंदूर चढ़ाएँ।
- मन में यह भाव रखें — “प्रेम में भेद नहीं, केवल समर्पण है।”
- इस पंक्ति को श्रद्धा से गुनगुनाएँ — “मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वतवासी।”
- अंत में पारिवारिक सुख, वैवाहिक सौहार्द और मन की शांति की प्रार्थना करें।
शिव-पार्वती उपासना के फल
- दाम्पत्य जीवन में प्रेम और विश्वास की वृद्धि होती है।
- अहम और भेदभाव का नाश होता है, जिससे मन में विनम्रता आती है।
- जीवन के संघर्षों में धैर्य और स्थिरता प्राप्त होती है।
- शक्ति और शिव दोनों का आशीर्वाद मिलने से हर कार्य में सफलता मिलती है।
- भक्ति से मन, वाणी और कर्म में पवित्रता आती है।
निष्कर्ष
“मैं महलों की रहने वाली, तू है भोले पर्वतवासी” हमें यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम और भक्ति बाहरी वैभव नहीं, बल्कि मन की सादगी और समर्पण से परिपूर्ण होती है। शिव और पार्वती का यह मिलन बताता है कि जब आत्मा में ईश्वर के प्रति प्रेम जागता है, तब भौतिक भेद मिट जाते हैं। जो भक्त इस भाव से शिव-शक्ति की आराधना करता है, उसके जीवन में संतोष, प्रेम और दिव्यता स्वतः प्रवाहित होती है।

