तीन हिस्सों में बंटे जाट और कांग्रेस का हो गया बंटाधार! 10 साल बाद फिर हाथ से फिसली सत्ता
हरियाणा। हरियाणा असेंबली के चुनाव नतीजे सामने आ चुके हैं। इन नतीजों से न केवल कांग्रेस दंग है बल्कि बीजेपी के कई नेता भी हैरान हैं। बीजेपी को हैट्रिक बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ लगातार आंदोलन चलाकर अपना वोट शेयर शेयर बढ़ाया और वह बढ़ा भी, फिर भी बाजी हाथ से निकल गई। आखिर कमी कहां रह गई। आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं।
दोनों को बराबर वोट शेयर,फिर भी हार गई कांग्रेस
कांग्रेस को इस बार के चुनावों में 39.05 प्रतिशत वोट हासिल हुए। वहीं बीजेपी को 39.8 फीसदी वोट मिले। दोनों में वोट शेयर लगभग समान था लेकिन कई ऐसी चीजें हुईं, जिससे कांग्रेस सत्ता की रेस में पिछड़ गई और बाजी धीरे- धीरे उसके हाथ से निकलती चली गई।
कई सीटों पर मामूली अंतर से हुई हार
असल में इस चुनावों में कांग्रेस कई सीटों पर मामूली अंतर से बीजेपी के हाथों हारी है। उसकी इन सीटों पर हार का बड़ा कारण वे छोटी- छोटी पार्टियां बनीं, जो अपने दम पर कोई खास सीटें तो हासिल नहीं कर सकीं लेकिन सरकार के खिलाफ एंटी- इनकंबेंसी वोटों में सेंध लगाकर कांग्रेस की बढ़त जरूर कम कर दी।
छोटी- छोटी पार्टियों ने काट दिए वोट
आम आदमी पार्टी को ही देखें, जिसने इन चुनावों में 1.79 प्रतिशत हासिल किए। ये सब सत्ता-विरोधी वोट थे, जो उसने कांग्रेस के हिस्से से काटकर अपने पाले में खींचे। इसी तरह बीएसपी को 1.82 प्रतिशत, सीपीआई को 0.01 प्रतिशत और सीपीएम को 0.25 फीसदी वोट मिले। इन तीनों पार्टियों को मिला वोट शेयर दिखने में भले ही मामूली रहा लेकिन कांग्रेस उम्मीदवारों को हराने में कारगर रहा।
जाट मतदाताओं में हुआ बिखराव
इसी तरह अभय चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो को इन चुनावों में 4.18 फीसदी और उनके बड़े भाई अजय चौटाला की लीडरशिप वाली जजपा को 0.91 प्रतिशत वोट मिले। ये दोनों चौटाला परिवार की पारिवारिक पार्टियां हैं, जिनका मुख्य वोट बैंक जाट मतदाता रहे हैं। इन दोनों पार्टियों के चुनाव लड़ने से जाट मतदाताओं में बिखराव हुआ, जिसने बीजेपी का काम आसान कर दिया और कांग्रेस के कैंडिडेट्स कई सीटें हार गए।
निर्दलीयों ने भी खूब बिगाड़ा खेल
हरियाणा असेंबली के इन चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों का भी बड़ा रोल रहा। इन उम्मीदवारों ने कुल 11.7 प्रतिशत वोट हासिल किए, जिसे बड़ा वोट शेयर कहा जा सकता है। निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों में कई नामचीन चेहरे भी थे, जिन्होंने अपने- अपने क्षेत्रों में नाम कमाया था। जब वे चुनाव में उतरे तो उनके समर्थक वोटर्स ने भी उन्हें हाथोंहाथ लिया। उनके ठीक-ठाक संख्या में वोट हासिल करने की वजह से कांग्रेस उन सीटों पर पिछड़ गई और उसे बीजेपी के हाथों हार झेलनी पड़ गई।